विद्रोह की शुरुआत


विद्रोह की शुरुआत जुलाई 1946 में तब हुई, जब नालगोंडा के जनगांव तालुका में गांव के उग्रवादियों ने एक देशमुख की हत्या कर दी। शीघ्र ही विद्रोह वारंगल एवं खम्मम में भी फैल गया। किसानों ने 'संघम' के रूप में संगठित होकर देशमुखां पर आक्रमण प्रारंभ कर दिये। इन्होंने हथियारों के रूप में लाठियों, पत्थर के टुकड़ों एवं मिर्च के पाउडर का उपयोग किया। किंतु, सरकार ने आंदोलनकारियों के प्रति अत्यंत निर्दयतापूर्ण रुख अपनाया। अगस्त 1947 से सितंबर 1948 के मध्य आंदोलन अपने चरमोत्कर्ष पर था। हैद्राबाद विलय के संदर्भ में भारतीय सेना ने जब हैदराबाद को विजित कर लिया, तो यह आंदोलन अपने आप समाप्त हो गया।


तेलंगाना आंदोलन की कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां थीं, जो निम्नानुसार हैं-

गुरिल्ला छापामारों (वेठियों) ने गांवों पर नियंत्रण स्थापित कर लिया, तथा बेगार प्रथा बिल्कुल समाप्त हो गई।
खेतिहर किसानों की मजदूरियां बढ़ा दी गईं।

अवैध रूप से अधिगृहीत की गई जमीनें किसानों को वापस लौटा दी गईं।

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लगान की दरों को तय करने तथा भूमि के पुनर्वितरण हेतु अनेक कदम उठाये गये।

सिंचाई-सुविधाओं में वृद्धि के लिये अनेक कदम उठाये गये, तथा हैजे पर नियंत्रण के लिये प्रयास किये गये।

महिलाओं की दशा में उल्लेखनीय सुधार आया।

 

भारत की सबसे बड़ी देशी रियासत से अर्द्ध-सामंती व्यवस्था का उन्मूलन कर दिया गया।